72 Part
42 times read
0 Liked
आह वो मंजिले-मुराद / फ़िराक़ गोरखपुरी आह वो मंज़िले-मुराद,दूर भी है क़रीब भी. देर हुई कि क़ाफ़िले उसकी तरफ़ रवाँ नहीं. दैरो-हरम है गर्दे-राह,नक्शे-क़दम हैं मेहरो-माह. इनमें कोई भी इश्क़ की ...